भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 2023 की आवश्यकता क्यों????

भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 के आधार पर न्यायालय मामले के तथ्यों के बारे में निष्कर्ष पर पहुंचता था और उसी के अनुसार निर्णय सुनाता था। यह 1 सितंबर, 1872 को प्रवृत्त हुआ था। लेकिन समय परिवर्तन के साथ-साथ भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 दाण्डिक विधियों में  पुनरावलोकन, समकालीन आवश्यकताओं तथा लोगों की आकांक्षाओं के अनुसार अंगीकृत करने की मांग करने लगा।

साक्ष्य विधि “विशेषण विधि” की श्रेणी में आता है जो अभिवचन और उस कार्य प्रणाली को परिभाषित करता है जिसके द्वारा मौलिक या प्रक्रिया विधियों को प्रचलन में लाया जाता है। विगत कुछ वर्षों में प्रौद्योगिकी उन्नति के कारण यह अधिनियम समय के अनुरूप अपूर्णता को दर्शाने लगा था। तदनुसार तारीख 11 अगस्त, 2023 को एक विधेयक भारतीय साक्ष्य विधायक, 2023 लोकसभा में पुनःस्थापित किया गया और 11 नवंबर, 2023 को समिति ने अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की। समिति द्वारा सिफारिश को सम्मिलित करते हुए सरकार द्वारा भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 2023 को मान्यता दी गई जो 1 जुलाई, 2024 से लागू हुआ। यह किसी न्यायालय में या उसके समक्ष सभी न्यायिक कार्यवाहियों जिसके अंतर्गत सेना न्यायालय सम्मिलित है, में लागू होता है।

इसमें निम्न उपबंध किए गए हैं।-

  1. यह साक्ष्य के अंतर्गत इलेक्ट्रॉनिक साधनों के माध्यम से दी गई कोई सूचना है जो साथियों, अभियुक्तों, विशेषज्ञों और पीड़ितों की उपस्थिति को अनुज्ञात करेगा। 

2. किसी इलेक्ट्रॉनिक या डिजिटल अभिलेख का विधिक प्रभाव, विधि मान्यता और प्रवर्तनीयता साक्ष्य के रूप में उसी प्रकार होगी, जिस प्रकार अन्य किसी दस्तावेज की होती है।

3. यह द्वितीयक साक्ष्य के क्षेत्र का विस्तार करता है। इसके अंतर्गत मूल से यांत्रिक प्रक्रिया द्वारा बनाई गई प्रतियां, मूल से बनाई गई या तुलना की गई प्रतियां, दस्तावेजों के प्रतिलेख के साथ पक्षकारों के विरुद्ध, जिन्होंने इसका निष्पादन नहीं किया था तुलना की जा सके और किसी व्यक्ति द्वारा दिए गए दस्तावेज की अंतर्वस्तु का मौखिक वृतांत जिसे उन्होने स्वयं देखा है और मूल अभिलेख का मैचिंग हैश वैल्यू देना, आदि आते हैं। ये सभी द्वितीयक साक्ष्य के सबूत के रूप में ग्राह्य होंगे। 

4. यह उन तथ्यों को सीमित करने के लिए है जो ग्राह्य है और न्यायालय इसके प्रमाण के लिए है। 

यह विधेयक साक्ष्य के माध्यम से मामलों के तथ्यों और परिस्थितियों को व्यवहारिक स्वरूप में लाने का प्रयास करता है। न्यायालयों के आचरण के नियमों को और अधिक सुस्पष्ट बनाता है और एकरूपता लाने की का प्रयास करता है।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top